* कृष्ण ऋतुओं में वसंत हैं *
अर्जुन ने पूछा है कि किन भावों में आपको देखूं?
कहां आपको खोजूं? कहां आपके दर्शन होंगे?
तब कृष्ण कहते हैं कि अगर तुझे मुझे स्त्रियों में खोजना हो तो कीर्ति में, श्री में, वाक् में, स्मृति में, मेधा में, धृति में और क्षमा में मुझे देख लेना। मैं गायन करने योग्य श्रुतियों में बृहत्साम, छंदों में गायत्री छंद तथा महीनों में मार्गशीर्ष का महीना, ऋतुओं में वसंत ऋतु हूं। अंतिम, वसंत ऋतु पर दो शब्द हम ख्याल में ले लें। ऋतुओं में खिला हुआ, फूलों से लदा हुआ, उत्सव का क्षण वसंत है।
परमात्मा को रूखे-सूखे, मृत, मुर्दा घरों में मत खोजना।
जहां जीवन उत्सव मनाता हो, जहां जीवन खिलता
हो वसंत जैसा, जहां सब बीज अंकुरित होकर फूल बन
जाते हों, उत्सव में, वसंत में मैं हूं। ईश्वर सिर्फ उन्हीं को
उपलब्ध होता है, जो जीवन के उत्सव में, जीवन के रस में, जीवन के छंद में उसके संगीत में, उसे देखने की क्षमता जुटा पाते हैं। उदास, रोते हुए, भागे हुए लोग, मुर्दा हो गए लोग, उसे नहीं देख पाते।
पतझड़ में उसे देखना बहुत मुश्किल है। मौजूद तो वह वहां भी है.. लेकिन जो वसंत में उसे नहीं देख पाते, वे पतझड़ में उसे कैसे देख पाएंगे? वसंत में जो देख पाते हैं, वे तो उसे पतझड़ में भी देख लेंगे। फिर भी पतझड़ पतझड़ नहीं मालूम पड़ेगी वसंत का ही विश्रम होगा। फिर तो वसंत काआगमन या वसंत का जाना होगा।
शायद पृथ्वी पर हिन्दुओं ने, अकेला ही ऐसा एक धर्म है,
उत्सव में प्रभु को देखने की चेष्टा की है। एक उत्सवपूर्ण,
एक फेस्टिव, नाचता हुआ। छंद में, और गीत में, और संगीत में, और फूल में।